बिहार बाढ़ की वजह से इन दिनों जिन दिक्कतों का सामना कर रहा है उसका अंदाजा हम अपने घरों बैठ कर नही लगा सकते, मैंने अबतक इस तरह की भयानक त्रासदी बिहार में नही देखी थी खैर इस तरह की दैविक आपदाएं तो समयानुसार आती ही रहती है , लेकिन इस त्रासदी ने समाज के कई चेहरों की जो हकीकत सामने लायी है उसे देख कर तो रूह ही नही काँप जाती है बल्कि सारी इन्शानियत शर्मसार हो जाती है! अब हम बारी बारी से इनकी बात करते हैं! बाढ़ जब अपनी विनाशलीला की इबारते लिख रही थी , लाखों लोग बेघर हो कर सड़कों पर खड़े थे और पथराई निगाहों उस उम्मीद की ओर देख रहे थे जो उन्हें सुरक्षित जगहों पर ले जाए , भूख से बिलखते बच्चे रोटी के लिए जब तड़प रहे थे उस वक्त हमारे उसी बिहार के कुछ लोग खली पड़े घरों में लूटपाट कर रहे थे नाविक जिनका जन्मजात कम लोगों को पर उतारना है जिन्हों ने इंसानों को ही नही स्वयम भगवन राम को भी पर उतरा था वही मल्लाह बाढ़ में फंसे लोगों की जिन्दगियौं को बचाने के लिए ६ से ७ हज़ार रुपये ले रहे थे हाँ अगर आप का परीवार लंबा है तो थोडी रियायत जरूर दे रहे थे ये तो बात रही उन धन लोभियों की जिनके जीवन का परम लक्ष्य पैसा ही होता है लेकिन कुछ घटिया किस्म के लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी जब बाढ़ पीड़ित लोग अपनी जान बचाने की गुहार लगा रहे थे उस वक्त ये लोग अबलाओं की इज्ज़त से खेल रहे थे मैं यकीन के साथ ये कह कह सकता हूँ की अगर कही इंसानियत नाम की चीज होगी जिसकी उम्मीद आज के इस दौर में नही है तो वह जरूर खुदखुशी कर लगी और फिर कही ढूँढने से भी नही मिलेगी! अब बात करते हैं देश के सम्मानित नेताओं की, बिहार के कई जीले जब बाढ़ में डूब रहे थे लोग अपनी जान बचने की गुहार लगा रहे थे उस वक्त हमारे ये नेता एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे ... मुझे दुष्यंत कुमार की एक लाइन याद आ रही है जो इस माहोल पर बहुत सटीक बैठती है ॥ भूख है तो सब्र कर रोटी नही तो क्या हुआ
आज कल दिल्ली में बहस का यही मुद्दा हुआ
शनिवार, 30 अगस्त 2008
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3 टिप्पणियां:
आपने सटीक लिखा है. पर होना चाहिये " आजकल दिल्ली मेँ है ज़ेरे बहस ये मुद्दआ. "
सारी सरकार ही पोली है कितनी भी खोलो पोल ही पोल है
अच्छी अभिव्यक्ति कृपया पधारें http://manoria.blogspot.com kanjiswami.blog.co.in
जब पैसा बोलता है तब सत्य मौन रहता है।
- कहावत
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