शनिवार, 11 जुलाई 2009

बिहार के बगैर भारत अपंग

आज सुबह सब्जीमंडी गया आलू , टमाटर के दाम पूछता आगे बढ़ रहा था की तभी पीछे से एक आवाज़ आई 'बाबूजी आइये यहाँ से ले लीजिये सब्जी ताजी है मंडी में ऐसी सब्जी नही मिलेगी' मैं मुडा और उसके पास पहुँचा सब्जी का मोल तोल होने लगा तो उसने पूछा 'बिहार के हैं का' , मैंने कहा ये क्यों पूछ रहे हो मोल भाव कर रहा हूँ इसलिए क्या वो बोला 'नही बाबूजी अगर बिहार के हैं तो मोल भाव की क्या बात है जो कह रहे हैं वही दे दीजियेगा!
खैर मैंने सब्जी ली और आगे बढ़ गया लेकिन घर लौटने के बाद मैं सोचने लगा की बिहार और बिहारी लोगों के बारे में सोचने लगा! फिर अचानक मुझे मुंबई में बिहारी लोगों पर हुए जुल्म याद आने लगे, यहाँ आगे बढ़ने से पहले मैं बता दूँ की मैं बिहार का रहने वाला नही लेकिन मेरी पढ़ाई लिखी बिहार में हुई है अब फिर मुद्दे पर आते हैं जरा सोचिये आप सुबह अखबार लेते है , वो अखबार ९० फीसदी घरों में कोई बिहारी हाव्कर ही पहुंचता है, आप सुबह दूध लेते हैं , ८० फीसदी घरों में दूध कोई बिहारी ही पहुंचता है , सब्जीमंडी से लेकर सहर में दौड़ते ऑटो रिक्शा या सड़कों पर रेंगते रिक्शा , रेलवे स्टेशनों पर कूली या स्टेशनों खाने का सामान बेचने वाले लोग, दिल्ली , मुंबई जैसे बड़े सहरों में चमचमाती हुई बिल्डिंग बनने वाले कारीगर से लेकर लेबर तक और बिल्डिंग बनने के बाद उसको साफ़ करने वाले स्वीपर और उस बिल्डिंग की सुरक्षा करने वाले गार्ड तक लगभग ८० फीसदी बिहारी ही है ये तो रही समाज के