बुधवार, 28 मई 2008

हथियार नही हौसले लड़ते है जंग में

कौन कहता है की आसमान मी छेद नही हो सकता
एक पत्थर तोतबियत से उछालो यारों
कभी कभी ये कथन मेझु सर्वथा सच ही लगता है ! और अब नीतिश कटारा हत्याकांड में फैसला आ जाने के बाद तो मुझे यकीं हो गया है!जिस तरह से एक माँ ने अपने बेटे के मरने के बाद ये जंग लड़ी है उसे यही कहा जा सकता है की अगर हौसला हो तो आप हर जंग जीत सकते है चाहे सामने दुश्मन कोई भी हो !

शनिवार, 24 मई 2008

आरुशी हत्याकांड समाज के जेहन पे सवालिया निशान

पिछले एक हफ्ते से आरुशी हत्याकांड की गूंज लगभग पूरे देश मे है , अगर पूरे देश में न भी हो तो कम से कम देश के लगभग हर बड़े शहरों मे तो इस हत्याकांड की गूंज सुनी ही जा सकती है , और खास कर मीडिया ने जिस तरह से इस मुद्दे मे दिलचस्पी दिखाई है उससे तो कोई शक ही नही की देश का हर एक आदमी इस मुद्दे को न जान गया हो ! देश के हर शहर हर गली मे आरुशी मद्दे पर चर्चा करते लोगों को सुना व देखा जा सकता है , और आज भी जब की ये मुद्दा लगभग ५० फीसदी सुलझ चुका है लोगों को जब भी फुरसत मिल रही है वो इस मुद्दे पर चर्चा सुरु कर दे रहे है ! लोगों की चर्चा का विषय पिछेले एक हफ्ते पहले जो था अब भी वही है , आरुशी की हत्या क्यो हुई , क्या राजेश तलवार के अवैध समबन्ध थे , क्या उनकी पत्नी इस बात को जानती थी , क्या पुलिस ने इस मामले मे घुश लिया , क्या पुलिस ने पुरी जांच दबाव में की वगेरह - वगेरह , ऐसे तमाम सव्ल है जिसकी तलाश पुलिस से लेकर आम आदमी तक सबको है ! यह एक अच्छी बात है की हम खबरों के प्रति इतने जागरूक है ! लेकिन इसके साथ एक बात का मुजे अफ़सोस भी है की हमने इस मुद्दे के दूसरे पहलुओं की तरफ़ गौर करने की कोसिस ही नही की , मैंने कई प्रबुद्ध जगहों पर भी जा कर ये देखने की कोसिस की की क्या वहाइस तेरह की चर्चा लोगों के बिच हो रही है लेकिन अफ़सोस मुझे वहा भी निराशा ही हाथ लगी ! आरुशी हत्या कांड महज एक १५ साल की बच्ची की हत्या नही है बल्कि ये समाज का वो चेहरा है जो हमारे सामने है और हम देखना नही चाहते , आरुशी की हत्या सामाजिक रिश्तों का एक नंगा सच है ! अगर हम इस घटना क्रम को सही से देखने की कोसिस करे तो इसके गर्भ मे हमे कई सवाल मुंह फैलाये खड़े मिलेंगे ये कौन से सवाल है इसपर ध्यान देने की जरूरत है ! पहला सवाल , क्या हमरे nazaron मे रिश्तो की कीमत ख़त्म हो गई है , दूसरा सवाल क्या जिंदगी के लिए पैसा इतना जरूरी हो गया है की हम उसके चक्कर मे अपने रिश्तो को भूल गए है , या फ़िर क्या हम जिंदगी की कीमत नही समझ payen है , या फ़िर ये भी हो सकता है की हम लोगों में संस्कार कमी कुछ jada ही हो गई है !
यहाँ एक बात समझ मे नही आ रही है की कोई बाप अपनी बेटी की हत्या केवल इस लिए कर देगा क्यों की वह उसके राज जानती है , नही यहाँ जरूर कोई न कोई बात और खैर बात जो भी हो है वह हमारे baatchit के मुद्दे के लिए बहुत mahatawpurn नही है ! यहाँ mahatwapurna बात ये है की कही न कही हमारे रिश्तों का biswas कम हो रहा है !
आज shahari माहौल में लोगों को अपने बच्चों को पैसा देने की तो फुरसत है लेकिन समय नही sayad वो ये बात नही samajhte की बच्चों को पैसे से jyada बच्चों को प्यार की jaroort होती है ! आज हमारे siksha मे भी naitik mulyon की कमी हो गई है