गुरुवार, 18 सितंबर 2008

आतंकियों के धमाके और बेचारी सरकार

पिछले दिनों दिल्ली में हुए सीरिअल ब्लास्ट ने एक बार फिर आतंकवाद को राष्ट्रीय चर्चा का विषय बना दिया है !
फिर वही ढेर सारे मुर्दा प्रश्न एक बार फिर अपने कब्र से बहार निकलकर लोगो की चर्चा के विषय बन गए हैं, जो कभी जयपुर, अहमदाबाद, बंगलोर , धमाकों के बाद अपनी कब्र में आराम कर रहे थे , अब तो ये प्रश्न भी लोगों की चर्चा का विषय बन कर उब चुके हें, लेकिन इन प्रश्नों का जवाब देने वाले हमारे सम्मानित नेता अपने रटे रटाए जवाबों से अभी तक नही ऊबे ! हर धमाकों के बाद एक ही प्रश्न और वही रटे रटाए जवाब आख़िर कब तक चलेगा ये , हमारे देश की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां आख़िर कब चेतेंगी हमारे जन प्रतिनिधि जिनके ऊपर हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी है आख़िर कब जागेंगे और हमारे दर्द को कब महसूस करेंगे ! मुझे दुष्यंत कुमार की एक पंक्ति इस पर बड़ी सटीक लगती है ... धुप ये अटखेलियाँ हर रोज करती है , एक साया सीढियाँ चढ़ती उतरती हें
कौन शासन से कहेगा कौन समझेगा , एक चिडिया इन धमाकों से सिहरती है

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